कयामत के दिन का जिक्र करते हुए कुरान कहता है, ‘अपनी किताब पढ़ ले, आज तू अपना हिसाब जांचने के लिए खुद ही काफी है।’ जब हम जीवित हैं, इंसान अल्लाह की नेअमत से अमीर होता है और इससे फायदा लेता है लेकिन अक्सर वह यह भूल जाता है कि उसे जो प्राप्त हो रहा है वह वास्तव में केवल हमारे लिए नहीं है।
एक महान सूफी और प्रतिष्ठित विद्वान शेख इब्ने–अल-अरबी ने एक बार कहा, ‘किसी भी इंसान पर अल्लाह की इससे बड़ी कोई नेअमत नहीं हो सकती कि अल्लाह ने उसे किसी वरदान से नवाजा हो और वह उस नेअमत को खुदा की मखलूक में बांटे और लोगों के साथ प्यार और दया की बाते करें। उनके अनुसार नैतिकता का सार हमदर्दी है। वह कहते हैं ‘अल्लाह पाक तुम्हारे दिल की आंख खोले ताकि तुम यह देख सको और यह याद कर सको कि तुमने क्या पालन किया है और किया कहा है। याद रहे कि तुम्हें क़यामत के दिन उसका हिसाब देना होगा।’ हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलेहि व सल्लम ने फरमाया कि ‘अपना हिसाब करो इससे पहले कि तुम्हारा हिसाब किया जाए।’
तीन चीजें हैं जो अक्सर इंसान को अपना आत्मनिरीक्षण करने से रोकती है। पहली चीज, इंसान का अपनी आत्मा की हालत से अनजान और लापरवाह होना है। दूसरी वस्तु, वे कल्पनाशील और काल्पनिक खुशियॉं हैं जो इंसान के अंदर छल/कपट से पैदा होती है और तीसरी वस्तु मनुष्य की अपनी आदतों का गुलाम बना रहना है।
शैख इब्ने-अल-अरबी का मानना था कि सभी मानव जाति के साथ इज्जत और दया का प्रदर्शन किया जाए और नेक नियती के साथ उनके मामलों को अंजाम दिया जाए। उनका कहना है कि ‘सभी मनुष्यों क साथ समान बर्ताव करो चाहे वह राजा हो या भिखारी, छोटा हो या बड़ा, यह जान लो कि सभी मानव जाति एक शरीर की तरह है और लोग इसके सदस्य हैं। विद्वानों का अधिकार सम्मान है और जाहिलों का अधिकार सही सलाह है, लापरवाह व्यक्ति का अधिकार है कि उनके साथ हमदर्दी और प्यार का सलूक हो। उन्हें खुदा ने इंसान की अमानत में रखा है और इंसान अल्लाह पाक की अमान में हो। हमेशा हर इंसान के प्रति प्यार, उदारता, हमदर्दी, इल्तजा और हिफाजत का प्रदर्शन करो।’